तनहाइयों का सिलसिला ये कैसा है
गर वो मेरा है तो फासला ये कैसा है
तुम न आओगे कभी ये मै जानती हूँ
फिर तेरी यादो का काफिला ये कैसा है
कभी नाचती थी खुशियाँ मेरे आंगन में
अब उदासियों का मरहला ये कैसा है
देख लूँ उसको तो दिल को सुकूं आये
मुझे जान से प्यारा दिलजला ये कैसा है
एहसास हो जायेगा मेरे जज़्बात का तुझे
देख मेरी आँखों में ज़लज़ला ये कैसा है
न इश्क ही जीता और न दिल ही हारा
वफ़ा की राह में मेरा हौसला ये कैसा है
हौसला तुझमे भी नहीं है जुदा होने का
दूर हो कर भी भला मामला ये कैसा है
बहुत ही सुन्दर।
ReplyDeleteसुभानाल्लाह......बेहतरीन ग़ज़ल........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बहुत कसी हुई गज़ल एक लम्बे अरसे के बाद पढ्ने मिली साधुवाद
ReplyDeleteतनहाइयों का सिलसिला ये कैसा है
ReplyDeleteगर वो मेरा है तो फासला ये कैसा है
बेहतरीन !