Monday, December 10, 2012

याद किया



आज फिर  इस तरह  तुम्हे याद किया
हमने  अपने आप  खुद को बर्बाद किया

तब मिला मुझको मेरी वफाओं का सिला
प्यार के रिश्ते से जब तुझको आजाद किया

चार दिन की जिंदगी क्या दुश्मनी क्या रंजिशें
हमने दुश्मनों से अपनी दोस्ती को आबाद किया

उसने भी मुजरिम समझा और फेर ली आँखे
हमने तो कई बार उसके दर पर फरियाद किया

5 comments:

  1. चार दिन की जिंदगी क्या दुश्मनी क्या रंजिशें
    हमने दुश्मनों से अपनी दोस्ती को आबाद किया

    उसने भी मुजरिम समझा और फेर ली आँखे
    हमने तो कई बार उसके दर पर फरियाद किया.wah kya bat hain ....

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  2. गज़ब के शेर हैं सभी ... बेहद उमदा गज़ल ...

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  3. चार दिन की जिंदगी क्या दुश्मनी क्या रंजिशें
    वाऽह ! क्या बात है !

    अनु जी
    बहुत खूबसूरत !


    शुभकामनाओं सहित…

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  4. Amazing..
    चार दिन की जिंदगी क्या दुश्मनी क्या रंजिशें
    हमने दुश्मनों से अपनी दोस्ती को आबाद किया

    बहुत खूबसूरत !

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