मै जानती हूँ लोगो की
हकिकत सभी
ये जुबा है
की कुछ भी
कहती ही
नहीं
दर्द है
दिल में और
दिल तडपता भी
है
पर ये
आंख है
क्यों बरसती ही
नहीं
दिल चाहता है
सीने से
लगलू तुझको
पर करू क्या मुझे तुझपे यकीं ही
नहीं
इश्क है
और इश्क पे
जाँ भी
निसार
कमबख्त जाँ है
की निकलती ही
नहीं
दर्द है दिल में और दिल तडपता भी है
पर ये आंख है क्यों बरसती ही नहीं
बहुत बढिया।
इश्क है और इश्क पे जाँ भी निसार
ReplyDeleteकमबख्त जाँ है की निकलती ही नहीं--------
प्यार,प्रेम,इश्क का महीन अहसास
बहुत सुंदर रचना
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?
lovely...it is
ReplyDelete"दिल चाहता है सीने से लगलू तुझको
ReplyDeleteपर करू क्या मुझे तुझपे यकीं ही नहीं"
यथार्थ लाइन है ये अनीता जी......