Monday, April 29, 2013

इश्क




मै जानती हूँ लोगो की हकिकत सभी
ये जुबा है की कुछ भी कहती ही नहीं
 
दर्द है दिल में और दिल तडपता भी है
पर ये आंख है क्यों बरसती ही नहीं

दिल चाहता है सीने से लगलू तुझको 
पर करू क्या मुझे तुझपे यकीं ही नहीं
 
इश्क है और इश्क पे जाँ भी निसार
कमबख्त जाँ है की निकलती ही नहीं

4 comments:


  1. दर्द है दिल में और दिल तडपता भी है
    पर ये आंख है क्यों बरसती ही नहीं
    बहुत बढिया।

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  2. इश्क है और इश्क पे जाँ भी निसार
    कमबख्त जाँ है की निकलती ही नहीं--------

    प्यार,प्रेम,इश्क का महीन अहसास
    बहुत सुंदर रचना
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    jyoti-khare.blogspot.in
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

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  3. "दिल चाहता है सीने से लगलू तुझको
    पर करू क्या मुझे तुझपे यकीं ही नहीं"

    यथार्थ लाइन है ये अनीता जी......

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