सहने गुलशन पे खिजाओं का असर होने लगा
अब तेरा गम भी मेरा हमसफर होने लगा
बेसहारों को सहारा दिया जिसने कल तक
क्या सितम आज खुद वो दरबदर होने लगा
हौले हौले उनके रगों मे सनसनाहट आई
नफ़रतों के जहर का ऐसा असर होने लगा
थे दरों दीवार उसके खंडहर की तरह
धीरे धीरे बे लबादा हर शजर होने लगा
मेरे उजड़ने की जब कहानी सुनी उसने
आंसुओं से चेहरा उसका तरबतर होने लगा
अनु -29/3/2014
wah bahut khub....
ReplyDeleteलाजवाब शेर हैं ..
ReplyDeleteबेसहारों को सहारा दिया जिसने कल तक
क्या सितम आज खुद वो दरबदर होने लगा ..
हकीकत लिए ये शेर खास लगा ...
बेसहारों को सहारा दिया जिसने कल तक
ReplyDeleteक्या सितम आज खुद वो दरबदर होने लगा
bahut khub...keep writing...