हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले मुहब्बत में नही है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस क़ाफ़िर पे दम निकले ख़ुदा के वास्ते पर्दा न काबे का उठा ज़ालिम कहीं ऐसा न हो यां भी वही क़ाफ़िर सनम निकले कहाँ मैख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़ पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था कि हम निकले .............................................. चाचा ग़ालिब
बहुत सुंदर प्रस्तुति ...!
ReplyDeleteमातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
RECENT POST आम बस तुम आम हो
प्रेम और मिलन की आशा में रचित गीत ... भावपूर्ण ...
ReplyDeleteहज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले
ReplyDeleteबहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले
मुहब्बत में नही है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस क़ाफ़िर पे दम निकले
ख़ुदा के वास्ते पर्दा न काबे का उठा ज़ालिम
कहीं ऐसा न हो यां भी वही क़ाफ़िर सनम निकले
कहाँ मैख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था कि हम निकले
.............................................. चाचा ग़ालिब