Sunday, May 11, 2014

चाक जिगर

 

Untitledheartcracked

 

यूँ चाक जिगर हम जब होंगे

ये दर्द   मुकम्मल    तब होंगे

दिल रोएगा आहे भर भर के

खामोश   मगर ये    लब   होंगे

जब बिछड़े   तो मैने   ये जाना

तुम साथ    मेरे न    अब   होगे

चहरे से झलकता है हाले  दिल

ये फासले जाने कम   कब  होगे

जब होगा दीदार उस महबूब का

कई तुफां मेरे दिल मे   तब होगे

3 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति ...!
    मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    RECENT POST आम बस तुम आम हो

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  2. प्रेम और मिलन की आशा में रचित गीत ... भावपूर्ण ...

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  3. हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि, हर ख़्वाहिश पे दम निकले
    बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले
    मुहब्बत में नही है फ़र्क़ जीने और मरने का
    उसी को देख कर जीते हैं जिस क़ाफ़िर पे दम निकले
    ख़ुदा के वास्ते पर्दा न काबे का उठा ज़ालिम
    कहीं ऐसा न हो यां भी वही क़ाफ़िर सनम निकले
    कहाँ मैख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़
    पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था कि हम निकले
    .............................................. चाचा ग़ालिब

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