Sunday, June 12, 2011



हिज्र की रात ये ढलती नहीं  क्यूँ
खिजां की रुत भी बदलती नहीं  क्यूँ

सहर, कहते हैं अगले मोड़ पर है
मगर ये रात फिर चलती नहीं क्यूँ

ख्वाब टूटे पलक में किरकते हैं
आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यूँ  

अभी देखो तो मिटटी में नमी है
कली दिल की मगर खिलती नहीं क्यूँ  
 
मीन हूँ और दरिया है लबालब
प्यास मेरी भला  बुझती नहीं क्यूँ    

Monday, May 9, 2011

वक्त रहता कभी एक सा नहीं है




वक्त रहता कभी एक सा नहीं है
यहाँ मोहोबत करना आसां नहीं है

उनकी यादो का साया है साथ मेरे
क्या हुआ जो सर पर आसमां नहीं है

पीकर अक्सर बेअसुल हो जातेहो तुम
पर जानती हूँ मै,दिल तेरा शैतां नहीं है

खुदा की बख्स है चल रही है सांसे
वरना जीने का मुझको अरमां नहीं है

मेरी बर्बादियो का तुम गम ना करो
इस दिल में अब कोई तूफान नहीं है

Monday, May 2, 2011

तनहाइयों का सिलसिला ये कैसा है


तनहाइयों का सिलसिला ये कैसा है
गर वो मेरा है तो फासला ये कैसा है

तुम  न आओगे कभी ये मै जानती हूँ
फिर तेरी यादो का काफिला ये कैसा है

कभी नाचती थी खुशियाँ मेरे आंगन में
अब उदासियों का मरहला ये कैसा है 

देख लूँ उसको तो दिल को सुकूं आये
मुझे जान से प्यारा दिलजला ये कैसा है

एहसास हो जायेगा मेरे जज़्बात का तुझे
देख मेरी आँखों में ज़लज़ला ये कैसा है

न इश्क ही जीता और न दिल ही हारा
वफ़ा की राह में मेरा हौसला ये कैसा है

हौसला तुझमे भी नहीं है जुदा होने का
दूर हो कर भी भला मामला ये कैसा है

Monday, April 25, 2011

अश्क मुझे करते हैं परेशान बहुत



तुम ही थे मेरे इश्क से अनजान बहुत
वरना इस दिल में थे अरमान बहुत

ज़ब्त ए गम आँख को पत्थर कर दे
अश्क मुझे  करते हैं  परेशान बहुत

फिर से बह निकली मुहब्बत की हवा  
पर वहाँ  जज़्ब हैं  तूफ़ान बहुत

जी तो लेती ‘अनु’तेरे बगैर मगर
जिंदगी होती नहीं है आसान बहुत
                            (10/2/2010- अनु)
Posted via email from धड़कन

Saturday, April 23, 2011

ज़रा सम्हल जा इसे तैर के जाने वाले




दोस्त बन बन के सताने वाले 
मेरी मैयत पे बिलखते है ज़माने वाले

आज फिर चैन में खलल सा है 
सपने में आने लगे चैन चुराने वाले

आज वो पूछ बैठे हाल मेरा
आज फिर ज़ख्म उभर आये पुराने वाले

तेरी दस्तक का मुझे इंतज़ार आज भी है
बेकली में मुझे ए छोड़ के जाने वाले

वो जो डूबा तो मिले मोती उसे
कौडियाँ बीनते ही रहे किनारे वाले

इश्क में भवर है तूफ़ान भी है
ज़रा सम्हल जा इसे तैर के जाने वाले
------- पद्म प्रकाश- ०८-०४-09 http://padmsingh.blogspot.com/

Tuesday, April 19, 2011

जीत का जश्न मनाने की जरूरत क्या थी




बे सबब अश्क बहाने की जरूरत क्या थी
दर्दे दिल सबको दिखाने की जरूरत क्या थी

हम तो खुद हार गए आपकी मोहोब्बत में
जीत का जश्न मनाने की जरूरत क्या थी

गर शिकारी थे तो करते शिकार कोई नया
किसी घायल पर निशाने की जरूरत क्या थी

इतने नाजुक हैं कि सांसो से पिघल जाते है
बिजलियाँ हम पे गिराने कि जरूरत क्या थी
(24/2/2010अनु)

Tuesday, April 12, 2011

मेरी आँखों में है खुश्क पानी सुनो ....








उजड़े ख्वाबो की है एक कहानी सुनो 


है जो हमको तुम्ही को सुनानी सुनो




जीत पर अपनी क्यों इतना मगरूर हो

हार हमने है खुद अपनी मानी सुनो




मुझको मालूम है बाद मरने मेरे

याद सबको हमारी है आनी सुनो




मुझसे छीनो ना मेरे दुखो को सनम

जिंदगी की यही है निशानी सुनो




आँख भर आई है मेरी तेरे लिए

मेरी आँखों में है खुश्क पानी सुनो




आज मिट्टी हुए सारे अरमाँ मेरे

खुद पे चादर ग़मों की है तानी सुनो