Monday, March 15, 2010

मेरी आँखों में है खुश्क पानी सुनो

उजड़े ख्वाबो की है एक कहानी सुनो
है जो हमको तुम्ही को सुनानी सुनो

जीत पर अपनी क्यों इतना मगरूर हो
हार हमने है खुद अपनी मानी सुनो

मुझको मालूम है बाद मरने मेरे
याद सबको हमारी है आनी सुनो

मुझसे छीनो ना मेरे दुखो को सनम
जिंदगी की यही है निशानी सुनो

आँख भर आई है मेरी तेरे लिए
मेरी आँखों में है खुश्क पानी सुनो

आज मिट्टी हुए सारे अरमाँ मेरे
खुद पे चादर ग़मों की है तानी सुनो
(9/2/2010-अनु)

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Friday, March 5, 2010

जिंदगी फिर से गुनगुनाये तो अच्छा होता

फांस ये दिल से निकल जाए तो अच्छा होता

जिंदगी फिर से गुनगुनाये तो अच्छा होता


 

 

अब तो तनहाइयों की धूप से जलता है बदन

प्यार की छांव जो मिल जाए तो अच्छा होता


 

 

तमाम शब गुजर गई ग़मों की दरिया में  

तीर कश्ती को जो मिल जाए तो अच्छा होता 


 

 

कोई तो हो भी मेरी नीद की साजिश में शरीक

मेरे खवाबो की ताबीर बदल जाए तो अच्छा होता

 

                                                               (21/2/2010-अनु)

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जिंदगी फिर से गुनगुनाये तो अच्छा होता

फांस ये दिल से निकल जाए तो अच्छा होता

जिंदगी फिर से गुनगुनाये तो अच्छा होता


 

अब तो तनहाइयों की धूप से जलता है बदन

प्यार की छांव जो मिल जाए तो अच्छा होता


 

तमाम शब गुजर गई ग़मों की दरिया में  

तीर कश्ती को जो मिल जाए तो अच्छा होता 


 

कोई तो हो भी मेरी नीद की साजिश में शरीक

मेरे खवाबो की ताबीर बदल जाए तो अच्छा होता

 

                                                               (21/2/2010-अनु)

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Tuesday, March 2, 2010

हमपे करम बहुत हैं उस सितमगार के

ऐ मेरे सनम तेरी महोब्बत में हार के
यूँ ही चले जाएगे शबे गम गुजार के

है मयकदा वीरान और सागर उदास है
जाने से उनके रूठ गए दिन बहार के

हम टूट भले जाएँगे शिकवा न करेंगे
हमपे करम बहुत हैं उस सितमगार के

ख्वाबो के ही आलम में आजाये वो कभी
पलकों में पालती रही दिन इंतजार के

फिर तोड़ के दीवार अना की पुकार लो
फिर देख लूँ मै हौसले अपने भी यार के

(26/2/2010-अनु)

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Friday, February 26, 2010

बिजलियाँ हम पे गिराने कि जरूरत क्या थी

बे सबब अश्क बहाने की जरूरत क्या थी
दर्दे दिल सबको दिखाने की जरूरत क्या थी

हम तो खुद हार गए आपकी मोहोब्बत में
जीत का जश्न मनाने की जरूरत क्या थी

गर शिकारी थे तो करते शिकार कोई नया
किसी घायल पर निशाने की जरूरत क्या थी

इतने नाजुक हैं कि सांसो से पिघल जाते है
बिजलियाँ हम पे गिराने कि जरूरत क्या थी
(24/2/2010अनु)

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Wednesday, February 24, 2010

तनहाइयों का सिलसिला ये कैसा है

तनहाइयों का सिलसिला ये कैसा है
गर वो मेरा है तो फासला ये कैसा है

तुम  न आओगे कभी ये मै जानती हूँ
फिर तेरी यादो का काफिला ये कैसा है

कभी नाचती थी खुशियाँ मेरे आंगन में
अब उदासियों का मरहला ये कैसा है 

देख लूँ उसको तो दिल को सुकूं आये
मुझे जान से प्यारा दिलजला ये कैसा है

एहसास हो जायेगा मेरे जज़्बात का तुझे
देख मेरी आँखों में ज़लज़ला ये कैसा है

न इश्क ही जीता और न दिल ही हारा
वफ़ा की राह में मेरा हौसला ये कैसा है

हौसला तुझमे भी नहीं है जुदा होने का
दूर हो कर भी भला मामला ये कैसा है
(ये मेरी पहली गज़ल है .... अगर पसंद आये तो हौसला दें) (1/2/2010---अनु )

Tuesday, February 23, 2010

कतरा कतरा इल्तिजा करे तो क्या मिले

कतरा कतरा इल्तिजा करे तो क्या मिले
न अश्के दरिया मिले और न उरूजे वफ़ा मिले

है जिंदगी कि दौड में शामिल हर एक शख्स
हर कोई चाहता है उसे रास्ता मिले

हमको न पढा कीजिये औरों की नजर से
चेहरा न पढ़ सके तो किताबो में क्या मिले

हर बार रिश्तों को समझने कि आरजू में
जो भी मिले सनम वो हमे बेवफा मिले

लगता है नए दौर ए रिवाजों में ये लाजिम
जिसकी खता नहीं हो उसीको सजा मिले
(22/2/2010-अनु)