Thursday, June 21, 2012

ना आया ..


कोई भी लम्हा कभी लौट कर ना आया
वो शख्स गया ऐसा फिर नजर ना आया

वफा की दश्त में कोई रस्ता ना मिला
सिवाय गर्दे सफर हम सफर ना आया
  
पलट के आने लगे शाम के परिंदे भी
मगर वो सुबह का भुला घर ना आया

किसी चराग ने पूछी नही खबर मेरी
कोई भी फुल मेरे नाम पर ना आया

ये कैसी बात कही शाम के सितारे ने
कें सकून दिल को मेरे रात भर ना आया  

Sunday, June 10, 2012

शामे मेरी भी अब बेसदा हो गई



जिंदगी मेरी  अब सजा  हो गई
मौत भी  मुझसे बेवफा  हो गई

मोहब्बत का पैगाम न आया कोई
जाने हमसे  क्या खता  हो गई

रंजो गम फैला है इन हवाओं में
क्यूँ हमसे खफा ये सबा हो गई

खामोश बैठे है महफ़िल में इस तरह 
शामे मेरी भी अब बेसदा हो गई  

भटकते कदमों की आरही है सदा
उनकी आवारगी की इन्तिहाँ हो गई
                           (अनु -20/5/2012)

Wednesday, March 28, 2012

सूखे हुए पत्ते

imagesरोज जीते है यूँ रोज मरते है

हाले दिल उनसे कहते डरते है

हम तो सूखे हुए पत्ते की तरह

रोज ही  टूट कर  बिखरते है

उनको कब है ख्याल अपना

एक हम ही उनका दम भरते है

रोज आते है ठहरते है चले जाते है

काफिले यादों के पलको में उतरते है

Monday, January 2, 2012

आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यों

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कयामत की रात ये ढलती नहीं क्यों

खिजा की रुत भी बदलती नहीं क्यों

 

क्याबतलाऊ मैं तुझको ऐ दिलबर

तन्हा रुत अब गुजरती नही क्यों

 

टुटा है जब से ख्वाब मेरी आँखों का

आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यों

 

अब्र आते है बरसते हैं चले जाते है

कली दिल की मगर खिलती नहीं क्यों

 

     बैठी हूँ बीच दरिया में मगर

   प्यास ये मेरी बुझती नहीं क्यों

 

               (अनु )

Thursday, September 15, 2011

क्या मजा मिलता है तुझको मिट जाने में


कल दिया था दिल हमे किसी दीवाने ने
बेहोश बेदिल फिरते रहे हम अनजाने में

हाले दिल सुनाने से रहगया मेरा दिलदार
बाद मुद्दत के वो आया इस गरीबखाने में

नींद की कश्ती हमे सकूंने सहर तक ले गई
डूब गए होते रात हम गम के मयखाने में

नजर मिला कर जो नजर से देदिया साकी
कुर्बान लाखो जाम तेरे इस एक पैमाने पे

शमा हर रात पूछती है बैखोफ परवाने से
क्या मजा मिलता है तुझको मिट जाने में

क्या शिकवा किसी से है अपना अपना नसीब
कोई है मयखाने के बाहर है कोई मयखाने में

तेरी महफिल मेरी गजलों का जिक्र क्यों हो
हमको तो शायर भी बनाया है तेरे अफसाने ने
                                     (अनु -)

Tuesday, June 28, 2011

डूबती कश्ती ने साहिल का इशारा नहीं देखा.




उनके होठो पे तबसुम कोई प्यारा नही देखा
फिर निगाहों ने कोई ख्वाब दोबारा नही देखा

बारहा  महके है गुज़रे हुए मौसम का खयाल  
कफस में फिर कभी गुलज़ार नज़ारा नहीं देखा

शब को रोशन करें ये चाँद  सितारे सारे
करे जो रूह को रोशन वो सितारा नही देखा

तिश्नगी रूह  की मेरी जो बुझाये कोई
अब तलक अब्र कोई ऐसा आवारा नही देखा

यूँ तो जज़्बा भी, हौसला भी  तमन्ना भी थी
डूबती कश्ती ने साहिल का इशारा नहीं देखा. 

Sunday, June 12, 2011



हिज्र की रात ये ढलती नहीं  क्यूँ
खिजां की रुत भी बदलती नहीं  क्यूँ

सहर, कहते हैं अगले मोड़ पर है
मगर ये रात फिर चलती नहीं क्यूँ

ख्वाब टूटे पलक में किरकते हैं
आंख शब भर मेरी लगती नहीं क्यूँ  

अभी देखो तो मिटटी में नमी है
कली दिल की मगर खिलती नहीं क्यूँ  
 
मीन हूँ और दरिया है लबालब
प्यास मेरी भला  बुझती नहीं क्यूँ