Tuesday, November 9, 2010

सैलाब अश्को के उमड़ आया तो बुरा मान गए




हाले दिल उनको सुनाया तो बुरा मान गए

जख्मे दिल अपना दिखाया तो बुरा मान गए



हमने बांधे हुए थे अपने जज्बात के तूफान

सैलाब अश्को के उमड़ आया तो बुरा मान गए



जो मोहोब्बत में कभी दी थी निशानी मुझको

उसको दुनिया को दिखाया तो बुरा मान गए



बेवफाई का गिला हमसे था अक्सर तुमको

यही सवाल हमने दोहराया तो बुरा मान गए



मुहब्बत में जो साथ गुजारा था कभी 'अनु'

लम्हा वो याद दिलाया तो बुरा मान गए









Tuesday, October 12, 2010

हर तरफ छिटकी चांदनी रात हो

moon


कुछ ऐसी अपनी भी मुलाकात हो
तेरे हाथो ने थामा मेरा हाथ हो
गुफ्तगू में कोई अनोखी बात हो
हर तरफ छिटकी चांदनी रात हो
मजा आता है छुप छुप मिलने का तभी
जब ढूढती हमे सारी कायनात हो
हो होठो पर मिलने की गुजारिश
आँखों में अश्कों की बरसात हो
इश्क नही मानता ऐसी बाते यारा
तुम हो मुफलिस या साहिबे अमारात हो
दुःख में भी लगाओ कहकहा यारो
नामुमकिन है की बाजी मात हो
(अनु -12/10/2010)


Thursday, October 7, 2010

बेसबब हम अश्क बहाए जाते है


दिल के रिश्ते जो आजमाए जाते है     
गम जिंदगी के फिर रुलाये जाते है  

शमा के साथ परवाना भी जलता है
साथ क्या  यूँ  निभाए जाते है

टूट कर बिखरे अरमानो की तरह
बेसबब हम अश्क बहाए जाते है

बुझती ही नहीं इश्क की आग यारा
दिल कुछ इस तरह जलाये जाते है

दिल रोता ही रहा तेरी बेवफाई पर
हम उल्फत में जख्म खाए जाते है

संगदिल है वो मगर रोयेगा जरूर
दर्द मेरे उसको भी तडपाये जाते है

Sunday, September 12, 2010

उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ


मेरे जख्मो के जो मिल जाते निशां
तन्हा होती मै न जिंदगी होती वीरां

तेज आंधियों ने जो बुझाये है दिए
उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ

तुम गर तोड़ दोगे यूँ आईने मेरे
इन टूटी तस्वीरों को मै देदुंगी जुबाँ

कल रात तेरी याद में रोते ही रहे
संग रोने लगी ये सावन की घटा

ऐसी राहों से भी हम गुजरे है जहा
गमों की धूप थी सर पे था खुला आसमां

आपने ही एहसासों के हाथो हुई जख्मी
मुझको तुमसे तो ना था कोई शिकवा

इन सूनी उदास रातो के दर्द से
कौन जाने हम कब होजाये फ़ना

ना उमीदी को करो न खुद पे सवार
अभी खुशबु ए जिंदगी है और है नया समां







Tuesday, September 7, 2010

दिल कुछ इस तरह जलाये जाते है


दिल के रिश्ते जो आजमाए जाते है
गम जिंदगी के फिर रुलाये जाते है

शमा के साथ परवाना भी जलता है
साथ  क्या  यूँ भी  निभाए  जाते है

टूट कर  बिखरे  अरमानो की तरह
बेसबब  हम  अश्क  बहाए जाते है

बुझती ही नहीं इश्क की आग यारा
दिल कुछ इस तरह जलाये जाते है

दिल रोता ही रहा तेरी बेवफाई पर
हम उल्फत में जख्म खाए जाते है

संगदिल है वो मगर रोयेगा जरूर
दर्द मेरे उसको भी तडपाये जाते है





Monday, August 30, 2010

कितने चुपचाप से लगते है शजर शाम के बाद


उसने देखा न कभी एक नजर शाम के बाद
कितने चुपचाप से लगते है शजर शाम के बाद

गर जानना हो हाले दिल मेरा ऐ सनम
देखना चाँद के दर्पण में मुझे शाम के बाद

इतने चुप की रास्ते को भी नहीं याद होगा
छोड देगे किसी रोज ये नगर शाम के बाद

शाम से पहले मस्त परिंदे अपनी उड़ानों में
छुप जाते है इन धोसलो में वो शाम के बाद

तुमने सूरज कभी देखा नहीं इस रात का दर्द
कितने बेरंग से लगते हैं शहर शाम के बाद

लौट के आएगा वो जरूर किसी रोज ‘अनु’
आस पर खोल के रखते है दर शाम के बाद





Thursday, August 12, 2010

चाँद तेरी याद के अभी तो ढले ही नहीं





माना की आँख में नींद के सिलसिले नहीं
शिकस्त खवाब के मुझमे अब हौसले नहीं

ये खबर मेरे दुश्मनों ने दी होगी तुमको
वो आये आके चलेगये और मिले भी नहीं

कौन है वो जो करता है अधेरो की बात 
चाँद तेरी याद के अभी तो ढले ही नहीं

अभी से हाथ तेरे थकने लगे है दिलदार
अभी तो जख्म जिगर के मेरे सिले ही नहीं

ना दबाव चाहत को की दिल में ही रह जाए
गुल तो अपनी मोहोब्बत के अभी खिले ही नहीं