सुहानी स्याह रातो में मोहोब्बत नूर बनती है
हमारे दिल के आईने में तब दुनिया संवरती है
वफा के फूल मेरी जिंदगी में मुस्कुराए थे
उन्हीं की याद में अब तक मेरी हस्ती महकती है
कभी तो बादलों की छाँव में हसरत मचलती है
कभी तनहाइयों की आग में ख्वाहिश पिघलती है
खिज़ा की रात में तारों की झालर झिलमिलाती है
किसी की याद बन कर चांदनी छत पर सिसकती है
कभी लगता है दिल फट के निकल जाएगा पहलू से
जो अफसाना मोहोब्बत का गमे तन्हाई ’लिखती है
(26/2/2010-अनु)
Posted via email from धड़कन